रोमांचक रास्ते और सुंदर नजारों के बीच बसा Sir George Everest House

Sir George Everest, ये वो व्यक्ति हैं जिनके नाम पर सबसे ऊंचा पर्वत शिखर माउंट ऐवरेस्ट का नाम रखा गया है. सर जॉर्ज एक सर्वेयर और जीऑग्रफ़र थे. 1830-1843 तक उन्होंने भारत के सर्वेयर जनरल के तौर पर काम किया. 1865 में रॉयल जीअग्रैफ़िकल सोसायटी ने सर जॉर्ज एवरेस्ट के महत्वपूर्ण योगदान के लिए माउंट एवरेस्ट का नाम उनके नाम पर रखकर उन्हें सम्मानित किया था.

सैन्य शिक्षा प्राप्त करने के बाद सर जॉर्ज ईस्ट इंडिया कम्पनी में शामिल हो गए थे. वे महज़ 16 साल के थे जब भारत आए. शुरुआत में उन्होंने विलियम लंबतों के साथ उनके असिस्टेंट के तौर पर काम किया. फिर बाद में विलियम लंबतों को रिप्लेस कर वे ख़ुद सुपरिंटेंडेंट बन गये. दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई और अन्य चीज़ों को जांचने में क़रीब 35 साल लगे.

उत्तराखंड के मसूरी से करीब 10km दूर है खनिज नगर. यहां ऊंची पहाड़ी पर सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस है. साथ ही यहां वो जगह भी है जहां से सर जॉर्ज पर्वतों की ऊंचाई का निरीक्षण करते थे.

वैसे ये दोनों ही जगह देखने के लिहाज से लोगों को दिलचस्प न लगें, लेकिन यहां का सुन्दर नज़ारा बहुत ही अद्भुत है. टूरिस्ट यहां केवल ख़ूबसूरत वादियों और ट्रेकिंग का लुत्फ़ उठाने के लिए आते हैं. इसके अलावा यहां तक पहुंचने के लिए जो रास्ता बनाया गया है वो काफ़ी एडवेंचर से भरा है. एकदम खड़ी चढ़ाई वाला रास्ता, जो कि घने जंगल के बीच से गुजरता है. रास्ते से गुजरते वक़्त जंगली जानवरों के आने का डर जो बना रहता है, वो सफर को और भी रोमांचक बनाता है.

टूरिस्ट का ध्यान सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस की तरफ आकर्षित करने के लिए उत्तराखंड टूरिज्म डिपार्टमेंट अब एक अहम कदम उठा रहा है. टूरिज्म विभाग सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस को म्यूज़ियम बनाने की तैयारी कर रहा है ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग यहां आएं और सर जॉर्ज एवरेस्ट के बारे में जानें.

यहां एक समस्या और है कि जो लोग यहां घूमने आते हैं उनमें से ज़्यादातर शायद पढ़े-लिखे गंवार हैं. जैसे हमने देखा है कि लोग सरकारी सम्पत्ति या किसी भी पब्लिक प्लेस पर ‘eg: neha love karan’ और न जाने क्या-क्या लिख जाते हैं, वैसा ही लोग यहां पर भी करते हैं. इतना ही नहीं लोग यहां आकर शराब से लेकर हर तरह का नशा करते हैं, लेकिन इन्हें रोकने और टोकने वाला यहां दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आता. उत्तराखंड टूरिज़म को इस पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है.

मेरी जिंदगी में बस ‘हीरो’ बनना रह गया था…

बहुत दिनों से अपने मन के विचारों को शब्दों का रूप देना चाह रहा था, लेकिन कोई अच्छा शीर्षक नहीं मिल रहा था. मेरी हमेशा की तरह की ऑवरथिंकिंग ने इसका जवाबा दिया. आज घर आते वक्त मुझे अपने शब्दों का शीर्षक मिला. जो था- ‘हीरो’.

एक ऐसा ‘हीरो’ जो आपके मेरे जैसा ही दिखाई देता है. शायद किसी की जिन्दगी के ‘हीरो’ आप हैं. शायद आपकी जिंदगी में ‘हीरो’ कोई और है. मेरी जिंदगी में बस ‘हीरो’ बनना रह गया था, लेकिन जो ‘हीरो’ मुझे बनना था वो बहुत ही सिंपल सा व्यक्ति था. उम्र के साथ ‘हीरो’ बनने की परिभाषा बदलती जा रही थी. जाने अनजाने में जिंदगी आपको वो “हीरो” बनाने के लिए मजबूर करती रहती है.

आप, मैं, हम सब अपनी जिंदगी में ‘हीरो’ चाहते हैं. बस फर्क इतना है की हर नजर का ‘हीरो’ अलग होता है. जैसे मां-बाप के लिए उनका बच्चा एक ‘हीरो’ में तभी बदल पता है जब वो अच्छा कमा लेता है, अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है, घर, जोरू उसके पास सब होता है. समाज में जब उसके मां-बाप सीना चौड़ा कर सिर उठा कर बोल पाते हैं अपने ‘हीरो’ (बच्चे) की उपलब्धियों को.

एक रिलेशनशिप में कोई आपका बैकग्राउंड देख के आपको अपना ‘हीरो’ बनने का मौका देता है. सामने वाले को आप में ‘हीरो’ नजर आना चाहिए तभी वो सोचेगा आपसे बात करने की और खुद को सोचेगा कभी आपके साथ. रिलेशनशिप वाले ‘हीरो’ की मांगे कुछ अलग ही हैं. इस ‘हीरो’ के पास पर्याप्त पैसा होना चाहिए, कुछ अलग सा स्वैग होना चाहिए. अगर अच्छी गाड़ी और दिखावा अच्छा है तो सोने पे सुहागा रहेगा. ये बात सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती. सामने वाले के साथ-साथ उसके परिवार को भी आप ‘हीरो’ लगने चाहिए. तभी बात बनेगी.

ऑफिस के मायनों में ‘हीरो’ की अलग परिभाषा है. ऑफिस का ‘हीरो’ वो है, जो धेले भर का भी काम न करे लेकिन बॉस की तारीफों के पुल बांधने में कोई कमी ना छोड़े. ऑफिस का ‘हीरो’ वही जो नंबर बनाने में सबसे आगे हो. कुछ समय नौकरी में रह कर मुझे पता चल गया था कि यहां तरक्की उसकी नहीं जो समय पर अपना बेहतरीन काम करके दे रहा है. बल्कि तरक्की उसकी है जो ‘जी सर’, ‘हां सर’ जैसे मंत्रों का इस्तेमाल कर रहा हो, जो लोगों का पत्ता काटने में माहिर हो, जो कान लगाने में माहिर हो.

इतने सालों से मैं एक सवाल के पीछे भाग रहा हूं कि समाज, ऑफिस और रिलेशनशिप में हर जगह ‘हीरो’ की ही क्यों जरुरत होती है. उस ‘हीरो’ को क्यों नहीं अपनाया जाता जो आप में, मुझ में, हम सभी में है. क्यों वो बनना पड़ता है जो हम नहीं हैं और ना ही बनना चाहते हैं. क्यों हमारा मन भी मचल उठता है उन ‘हीरो’ को देख जो हम बनना ही नहीं चाहते.

जिंदगी में मैंने कुछ ऐसे पल भी देखे, जहां मौज-मस्ती कोई और कर रहा है और उसे मैंने महसूस किया हो सिर्फ उन्हें देख कर. क्यों किसी को उठने में मदद करने की जगह उसे सीधा दौड़ने क लिए कहा जाता है. क्यों नाकामी को कोई हिम्मत से स्वीकार नहीं कर सकता? क्यों प्यार में पैसों और ऊंच-नीच को देखे बिना कोई दिल नहीं लगा सकता? क्यों ऑफिस में बिना मंत्र जपे और ईमानदारी से काम कर के तरक्की नहीं पा सकता?

जिंदगी आपको जो भी देती है, आपको हर चीज स्वीकारनी चाहिए. चाहे आपकी जिंदगी में कोई ‘हीरो’ हो या नहीं. बचपन में परिवार का ‘हीरो’, जवानी में समाज और परिवार का ‘हीरो’, ऑफिस में बॉस का ‘हीरो’, शादी के बाद पत्नी और बच्चों का ‘हीरो’. सफलता की सीढ़ी पर चढ़ाना अच्छी बात है, मगर उस राह पर जबरने धकेले जाना अच्छी बात नहीं. वो पलट कर नीचे भी गिरा सकती है.

क्या कोई इंसान बिना ‘हीरो’ बने खुश नहीं रह सकता है?