कहते हैं कि मुंबई हर किसी को अपने में समा लेती है यानि हर किसी को अपना बना लेती है. पर इन दिनों मुंबई के हाल देखकर ऐसा लग नहीं रहा. कर्मभूमि अब रणभूमि में बदली सी नजर आ रही है. सुशांत की मौत के बाद से उठी आवाजें अब महाराष्ट्र सरकार को चोट देती सी दिख रही हैं. एक अभिनेत्री, जिसने सुशांत केस में आवाज उठाते हुए महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस को घेरा. अब वही अभिनेत्री महाराष्ट्र के लोगों को विलेन लग रही है.
वैसे तो ये अभिव्यक्ति की आजादी है कि अगर आप सरकार की नीतियों से सहमत नहीं तो आप अपनी आवाज उठा सकते हैं. कंगना वैसे तो कई बार बेतुकी बातें ही करती हैं, लेकिन सरकार के खिलाफ आवाज उठाना उनकी अभिव्यक्ति की आजादी है. महाराष्ट्र की उद्धव सरकार ने आज जो कंगना का ऑफिस तोड़कर कार्रवाई की है, यह केवल बदले की भावना जैसा ही दिखता है.
सबसे बड़ा सवाल तो यही खड़ा होता है कि अगर कंगना के ऑफिस में अवैध निर्माण था, बीएमसी को इतने महीने से यह अवैध निर्माण क्यों नजर नहीं आया. कंगना के शिवसेना को ललकारने के बाद ही ये अवैध निर्माण क्यों नजर आया.
तार-तार हुई भाषाई मर्यादा
पहले तो भाषा भी दोनों तरफ से थोड़ी सभ्य निकल रही थी, लेकिन यह जुबानी जंग इतनी तेज हुई कि भाषा भी चरम पर पहुंच गई. भाषाई मर्यादा को तार-तार करती राजनीति देश में फिर देखने को मिली. शिवसेना नेता संजय राउत ने एक तरफ कंगना को हरामखोर लड़की कह डाला, तो अब बीएमसी द्वारा अपना ऑफिस तोड़े जाने पर कंगना तू-तड़ाक पर उतर आईं. कंगना ने महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे को खुली चुनौती दे डाली. बोलीं- ‘आज मेरा घर टूटा है, कल तेरा घमंड टूटेगा’.
अब कंगना के इस बयान पर शिवसेना भी चुप रहने वालों में से नहीं हैं. शिवसेना प्रमुख को ललकारने पर महाराष्ट्र की जनता अब और कंगना के खिलाफ खड़ी होती नजर आएगी. इस मामले ने कितना राजनीतिक रंग लिया है, ये तो आज एयरपोर्ट की तस्वीरें चीख-चीख कर बता रही हैं. कंगना के मुंबई पहुंचने से पहले ही शिवसेना बनाम करणी सेना और आरपीआई मुंबई एयरपोर्ट पर देखने को मिला. एक तरफ जहां करणी सेना और आरपीआई कंगना के समर्थन में नारे लगाते दिखे, तो वहीं दूसरी ओर शिवसेना के कार्यकर्ता काले झंड़ों के साथ कंगना मुर्दाबाद के नारे लगा रही थी.
जोश में होश खो बैठी महाराष्ट्र सरकार
एक तरफ तो शिवसेना कहती है कि हमने अपने कार्यकर्ताओं को संयम बरतने को कहा है. पर मुंबई एयरपोर्ट पर दिखा नजारा तो कुछ ओर ही बयां करता है. अक्सर लोग जोश में होश खो देते हैं. यहां महाराष्ट्र सरकार पर यह बात बिल्कुल सटीक बैठती है. कंगना की जुबानी जंग का जवाब जो महराष्ट्र सरकार ने दिया है, वो जोश में होश खोने जैसा ही लगता है.
शिवसेना की जागीर नहीं महाराष्ट्र
ऐसा लगता है कि शिवसेना, महाराष्ट्र को अपनी जागीर समझती है. मराठी मानुष के अलावा महाराष्ट्र में दूसरी जगह से आए लोगों को इज्जत नहीं दी जाती. हालांकि सभी लोग महाराष्ट्र में ऐसे नहीं है, पर वर्चस्व अपना होने के कारण शिवसेना और उससे जुड़े लोग मुंबई को अपनी जागीर समझ बैठे हैं. कभी कहा जाता है कि उत्तरी भारतीय लोग यहां नौकरी नहीं कर सकते, तो कभी मुस्लिमों को घर नहीं दिए जाते. क्यों शिवसेना हमेशा ही लोगों को डराने धमकाने पर तुली रहती है?
राजनीतिक घमासान में छत्रपति शिवाजी
महाराष्ट्र में जब भी राजनीतिक घमासान होता है, तो छत्रपति शिवाजी के नाम को बीच में घसीट लिया जाता है. छत्रपति शिवाजी का नाम लेकर अपने फायदे के लिए एक दूसरे पर निशाना साधना अब आम हो चला है. छत्रपति शिवाजी, किसी एक समुदाय या राज्य के नहीं है. छत्रपति शिवाजी पूरी देश के हैं. कोई अभिनेत्री हो या कोई राजनीतिक पार्टी, किसी को भी इस तरह इतिहास के पन्नों में दर्ज लोगों की अस्मिता को चोट पहुंचाना शोभा नहीं देता.