तीरंदाज़ी में रुचि न होने के बाद बावजूद ज्योति बालियान कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग ले चुकी हैं। ज्योति अपने अबतक के तीरंदाज़ी करियर में कई मेडल जीत चुकी हैं जिनमें कई गोल्ड मेडल शामिल हैं। Sportsgranny.com के साथ बातचीत में ज्योति ने बताया कि उनकी तीरंदाज़ी में कोई रुचि नहीं थी और वह किसी अन्य खेल में अपना करियर बनाना चाहती थी। इसी तरह ज्योति ने अपनी जिंदगी से जुड़ी कई बातें हमसे साझा की। ज्योति ने बताया कि कैसे उनके स्कूल में अन्य बच्चे उनके पैर की परेशानी को देखकर उनका मजाक उड़ाते थे।
सवाल 1. तीरंदाज़ी सीखना कब शुरू किया और इस खेल को क्यों चुना?
जवाब. मैंने तीरंदाज़ी खेलना साल 2010 में शुरू किया था। जिस गांव से कोच कुलदीप कुमार वेदवान ताल्लुक रखते हैं, वहीं मेरे मामा भी रहते हैं। एक दिन मेरे मामा जी ने मम्मी को फोन किया और उन्हें बताया कि हमारे गांव में तीरंदाज़ी सिखाई जाती है और ज्योति को यहां भेज दो। मेरे मम्मी-पापा ने मुझे मामा जी के यहां भेज दिया, जहां पर मेरी मुलाकात कुलदीप सर से हुई। कुलदीप सर ने मुझे बहुत ही अच्छे से बताया कि तीरंदाज़ी कैसे की जाती है। इसके बाद मैंने कुलदीप सर की अकेडमी वेदवान आर्चरी अकेडमी में तीरंदाज़ सीखना शुरू कर दिया।
सवाल 2. क्या शुरू से आपकी तीरंदाज़ी में रुचि थी?
जवाब. नहीं, मेरी कभी भी तीरंदाज़ी में रुचि नहीं थी। मुझे वॉलीबॉल खेलना अच्छा लगता था लेकिन पैर में परेशानी होने के कारण मुझे कभी वॉलीबॉल खेलने का मौका नहीं मिला। मेरी दीदी वॉलीबॉल खिलाड़ी हैं और मैं उनके साथ जाती तो केवल सभी को वॉलीबॉल खेलते हुए देख पाती थी लेकिन पैर के कारण मैं कभी खेल नहीं पाई। वहीं मेरे मम्मी-पापा को तीरंदाज़ी के बारे में पता चला तो उन्होंने मुझसे कहा कि यह खेल अच्छा और यह सीख लेगी तो बहुत कुछ अच्छा हो जाएगा। वैसे पापा भी चाहते थे कि मैं वॉलीबॉल खेलूं लेकिन मैं नहीं खेल पाती थी इसलिए उन्होंने मेरा दाखिला तीरंदाज़ी के लिए करवा दिया।

सवाल 3. तीरंदाज़ी जब खेलना शुरू किया तो किन परेशानियों का सामना करना पड़ा?
जवाब. सबसे बड़ी समस्या तो मेरे सामने ये आई कि मुझे तीरंदाज़ी सीखने के लिए घर से दूर होना पड़ा। मैं कभी भी मम्मी-पापा से अलग नहीं रही थी। जब यह पक्का हुआ कि मैं तीरंदाज़ी खेलने के लिए बाहर जाऊंगी तो मन में चलने लगा कि मैं कैसे घर से अलग रहूंगी और सब कैसे मैनेज करूंगी। वैसे भी तीरंदाज़ी में मेरी कोई खास दिलचस्पी नहीं थी इसलिए मैं मम्मी-पापा से कहती थी कि मुझे नहीं जाना लेकिन वे मुझे प्रोत्साहित करते कि बेटा यह कर ले तेरे लिए ही अच्छा है। मेरा तीरंदाज़ी सीखने से मना करने का एक कारण यह भी था कि एक धनुष ही काफी महंगा आता था। मैंने पापा से कहा कि एक धनुष करीब एक से डेढ लाख रुपए तक का आएगा। इस पर पापा ने कहा कि कोई बात नहीं हम दिला देंगे लेकिन तुझे मेहनत करनी है। इसके बाद पापा ने बैंक से लोन लेकर मुझे आर्चरी सेट दिलाया और फिर मैंने भी सीखने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
सवाल 4. पढ़ाई और खेल में कैसे तालमेल बिठाती हो?
जवाब. मैं एक खिलाड़ी होने के साथ-साथ बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा हूं। जब मैंने तीरंदाज़ी खेलना शुरु किया तब मैं दसवीं कक्षा में थी। तीरंदाज़ी सीखने के लिए अकेडमी में दाखिला लेने के बाद मैंने प्राइवेट पढ़ाई की, जिसमें केवल परीक्षा देने के लिए जाना होता था। बीच में पढ़ाई छूट भी गई थी लेकिन फिर से मैंने खेल के साथ-साथ पढ़ाई शुरू कर दी है। अब मैं अपने खेल के समय खेलती हूं और पढ़ाई के समय पढ़ाई करती हूं।